Tuesday, February 25, 2025

असम के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘ भैंसों की लड़ाई असम की परंपरा और विरासत’, नया कानून बनाने की कही बात, हाईकोर्ट ने रद्द की थी राज्य सरकार की एसओपी

File Photo 

असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा ने शनिवार को राज्य में भैंसों की पारंपरिक लड़ाई के आयोजन के लिए नया कानून लाने की बात कही है। सदियों से असम की संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग रही, भैंसों की लड़ाई के खेल को अनुमति देने के लिए असम सरकार नया कानून लाएगी। असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा ने इसका ऐलान किया है। डॉ. शर्मा ने एक पुल का उद्घाटन करने के बाद सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार राज्य की विरासत को संरक्षित करने के लिए पहल करेगी।

उन्होंने कहा कि अहतगुरी की भैंसों की लड़ाई हमारी परंपरा और विरासत है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे पारंपरिक खेल के रूप में मान्यता दी है। उसके दिशानिर्देशों का पालन करते हुए, हम जल्द ही भैंसों की लड़ाई जैसे पारंपरिक खेलों की अनुमति देने वाला कानून बनाएंगे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जल्द ही विधानसभा में एक विधेयक लाएगी, जिसमें भैंसों की लड़ाई को कानूनी संरक्षण देने की मांग की जाएगी। कानून बनने से लोग पारंपरिक भैंसों की लड़ाई देख सकेंगे और आनंद ले सकेंगे।

गौरतलब है कि बीते साल दिसंबर माह में असम में भैंसों और बुलबुल पक्षियों की लड़ाई के खेल के आयोजन को लेकर राज्य सरकार की ओर बनाई गई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को गौहाटी हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। तब कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार की एसओपी विभिन्न वन्यजीव संरक्षण कानून का उल्लंघन है। हाईकोर्ट में जस्टिस देवाशीष बरुआ की पीठ ने पेटा इंडिया द्वारा दायर याचिकाओं के जवाब में असम सरकार की एसओपी को रद्द कर दिया था। पीठ ने कहा था कि भैंस और बुलबुल की लड़ाई के खेल के लिए दिसंबर 2023 में राज्य सरकार की ओर से बनाई गई एसओपी विभिन्न वन्यजीव संरक्षण कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।

असम सरकार को इन लड़ाई के खेलों को अनुमति देने के लिए कानूनों में संशोधन करना चाहिए था। अन्य राज्यों ने भी यही किया है। मगर कार्यकारी आदेश जारी करके मौजूदा प्रावधानों पर काबू पाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा था कि दिसंबर 2023 की अधिसूचना को रद्द किया गया है। भैंसों और बुलबुल पक्षी की लड़ाई का खेल सदियों से असम की संस्कृति और परंपरा का एक अभिन्न अंग रही है।

यह कार्यक्रम अहोम शासन के दौरान विशेष रूप से रंग घर में औपचारिक रूप से आयोजित किया गया था। यह मुख्य रूप से माघ बिहू उत्सव के दौरान मनाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने जानवरों को पहुंचने वाली चोटों को ध्यान में रखते हुए इस तरह की प्रथाओं को अस्वीकार कर दिया था। साल 2014 से इसे बंद कर दिया गया था। दोनों कार्यक्रम राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) के पालन के तहत इस साल जनवरी में फिर से शुरू किए गए थे। एजेंसी

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