Friday, May 23, 2025

असम विश्वविद्यालय को असम आंदोलन का उपज कहे जाने पर भड़का छात्र संगठन आक्सा

  • आक्सा ने कहा, विश्वविद्यालय असम आंदोलन का उपज नहीं, बल्कि बराक घाटी के लोगों के संघर्ष का परिणाम  

बांग्ला साहित्य सभा असम के महासचिव प्रशांत चक्रवर्ती ने असम विश्वविद्यालय को असम आंदोलन की उपज कहने पर छात्र संगठन अक्सा नाराजगी व्यक्त करते हुए बयान की तीव्र निंदा की है।

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आक्सा इतना अधिक नाराज है कि प्रशांत चक्रवर्ती से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा है। यदि वह माफी नहीं मांगते हैं तो आक्सा भविष्य में बराक घाटी में प्रशांत चक्रवर्ती के प्रवेश का विरोध करेगी।

अक्सा के मुख्य सलाहकार रूपम नंदी पुरकायस्थ ने कड़े शब्दों में यह चेतावनी दी है। रूपम ने स्पष्ट रूप से कहा कि सिलचर में विश्वविद्यालय पाने के लिए संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है। बराक घाटी के लोगों ने इस विश्वविद्यालय पाने के लिए तीव्र आंदोलन किया, तब जाकर उसका फल मिला। लेकिन प्रशांत चक्रवर्ती ने पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना और अहंकारी टिप्पणी की। रूपम नंदी पुरकायस्थ ने कहा कि प्रशांत चक्रवर्ती इस प्रकार के बयान देकर बराक घाटी के लोगों द्वारा किए आंदोलन का अपमान करने के साथ असमिया और बांग्ला भाषा भाषी में विभाजन की लकीर खींचना चाहते है।

प्रशांत चक्रवर्ती ने हाल ही में असम विश्वविद्यालय में एक बैठक में टिप्पणी कर विवाद खड़ा कर दिया है। इसको लेकर कड़ी प्रतिक्रिया हो रही। रूपम नंदी पुरकायस्थ ने कहा प्रशांत चक्रवर्ती ने इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने वाला बयान दिया है। बराक घाटी के संघर्षरत लोग इसे व्यक्तिगत रूप से नहीं लेंगे। रूपम ने शुक्रवार को सिलचर प्रेस क्लब में एक संवाददाता सम्मेलन में असम विश्वविद्यालय का आना और संगठन के स्थापना के इतिहास पर भी संक्षेप में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संगठन की स्थापना 15 मई 1983 को सिलचर के एके चंदा लॉ कॉलेज में हुई थी।

यदि बराक घाटी में उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए कोई संगठन बनाया गया है, तो वह अक्सा है। प्रारंभ में इसका नाम ऑल कछार स्टूडेंट एसोसिएशन था। बाद में, उन्हीं मांगों को लेकर करीमगंज और हैलाकांडी में अलग-अलग संगठन बनाए गए। इसके बाद, तीनों जिला समितियों का विलय कर ऑल कछार करीमगंज हैलाकांदी स्टूडेंट एसोसिएशन का गठन किया गया। अक्सा के नेतृत्व में यह आंदोलन एक दशक तक चला।

छात्र, युवा, मजदूर, किसान, ठेला चालक, रिक्शा चालक और आम लोगों ने उस आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लिया। आब्सू प्रमुख उपेन्द्रनाथ ब्रह्मा ने सहमति व्यक्त की और बराक की उचित मांगों का समर्थन किया था। उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई. रूपम ने कहा कि बराक घाटी के लोग उनके योगदान को कभी नहीं भूलेंगे। हालांकि विश्वविद्यालय के मिलने के बाद भी इसका एक संगठन द्वारा विरोध हुआ था पर असफल रहा।

Yogesh Dubey

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