स्वास्थ्य प्रबंधन में एक नया क्षितिज खुलेगा
गुवाहाटी। स्वास्थ्य विभाग के कुछ नौकरशाह स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिक बनाने की राज्य सरकार की योजना को व्यावहारिक रूप से पंगु बनाने की कोशिश कर रहे हैं। नौकरशाहों के उस वर्ग की साजिश के कारण स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लिया गया एक जनोन्मुखी निर्णय भी औंधे मुंह गिरने वाला है। स्वास्थ्य विभाग के विभिन्न स्तरों ने इस पर काफी नाराजगी जताई है।
राज्य के विकास में उन नौकरशाहों की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग स्वास्थ्य विभाग की ओर से की गई है। सच तो यह है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने पूरे देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिक बनाने के लिए कई निर्णय लिए हैं। इस पहल का उद्देश्य किसी भी अस्पताल में पूरी तरह से एकीकृत प्रणाली बनाना है। जहां मरीजों की अपॉइंटमेंट लेने से लेकर जांच तक सब कुछ कंप्यूटर के जरिए संचालित होगा।
किसी भी मरीज को निजी अस्पताल की शैली में घर बैठे ही अपने इलाज से जुड़ी सभी जानकारी मिल जाएगी। किसी भी बीमारी के मामले में, अस्पताल में डॉक्टरों ने किसी विशेष रोगी पर क्या परीक्षण किए हैं या उन्होंने किस तरह का उपचार अपनाया है, इसका रिकॉर्ड परिष्कृत तरीके से रखा जाएगा। त्रिपुरा सरकार राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में ‘एकीकृत स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली’ शुरू करने की योजना बना रही है।
इस परियोजना का उद्देश्य आधुनिक तकनीक का उपयोग करके अस्पताल प्रबंधन को सरल और सुव्यवस्थित करना, रोगियों को सटीक जानकारी प्रदान करना और वास्तविक समय की निगरानी के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ाना है। हालांकि, परियोजना के कार्यान्वयन के लिए निर्धारित पात्रता मानदंड और वित्तीय मानदंडों को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
परियोजना के लिए आरएफपी (प्रस्ताव के लिए अनुरोध) में कहा गया है कि शामिल होने के लिए संगठन का न्यूनतम वार्षिक कारोबार 10 करोड़ रुपये होना चाहिए। यह टर्नओवर कुछ छोटी कंपनियों के पक्ष में कम है। लेकिन परियोजना का कुल देयता मूल्य 30 करोड़ रुपये है, जिसका अर्थ है कि किसी भी गलती या विफलता के मामले में संबंधित कंपनी को तीन गुना मुआवजा देना होगा इस तरह की बड़े पैमाने की प्रौद्योगिकी-गहन परियोजनाओं को आमतौर पर अनुभवी सिस्टम इंटीग्रेटर्स (एसआई) या प्रबंधित सेवा प्रदाताओं (एमएसपी) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है, जिनके पास बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य क्षेत्र की परियोजनाओं को वितरित करने का अनुभव होता है।
हालांकि, प्रस्तावित नीति में अनुभवी संगठनों के बजाय कुछ ऐसे संगठनों को अवसर दिया जा रहा है, जिनके पास अपेक्षाकृत कम क्षेत्र का अनुभव और कम टर्नओवर है। हालांकि, इस काम में अनुभव सबसे महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, संगठनों के चयन में सख्त पात्रता मानदंडों के कारण प्रतिस्पर्धा का दायरा कम हो गया है। चूंकि पात्र कंपनियां इसमें भाग नहीं ले पा रही हैं, इसलिए कुछ कंपनियों को अपनी सुविधा के अनुसार कीमत निर्धारित करने का अवसर मिल रहा है, जिससे परियोजना की लागत अनावश्यक रूप से बढ़ रही है।
इन सीमाओं को हटाने के लिए निष्पक्ष, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी नीति अपनाना आवश्यक है। अनुभवी सिस्टम इंटीग्रेटर्स को वरीयता देने और पात्रता मानदंड के रूप में संयुक्त उद्यमों को अनुमति देने से परियोजना की पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ेगी योग्य संस्थाओं को जिम्मेदारी चयन के जरिए ही सौंपी जा सकती है। खास तौर पर त्रिपुरा में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एच.एम.आई.एस. परियोजना एक महत्वपूर्ण उपक्रम हो सकती है। लेकिन अगर संस्था के चयन में सही दृष्टिकोण नहीं अपनाया गया तो इससे परियोजना के क्रियान्वयन पर सवालिया निशान खड़े होंगे।
इसलिए परियोजना के सफल क्रियान्वयन के लिए नीतिगत बाधाओं को दूर करना बेहद जरूरी है। अगर सही कदम उठाए गए तो इससे राज्य के स्वास्थ्य प्रबंधन में एक नया क्षितिज खुलेगा। पूरे मामले को लेकर राज्य के स्वास्थ्य विभाग में काफी चर्चा है। कई अधिकारियों की भूमिका को लेकर कानाफूसी होती रही है। राज्य के मुख्यमंत्री खुद एक डॉक्टर हैं। ऊपर से वे स्वास्थ्य विभाग के भी प्रभारी हैं। शिकायत के मुताबिक यहीं पर अफसरशाही बैठी है। स्वास्थ्य विभाग के एक सूत्र के मुताबिक नौकरशाहों का एक समूह मुख्यमंत्री को बताए बिना यह सारा काम कर रहा है। उच्चस्तरीय जांच की भी मांग की गई है।