राज्य सरकारों और विश्वविद्यालयों को छात्रों को पढ़ाई के बोझ और परीक्षा के मानसिक तनाव से मुक्त कर आनंददायक और अनुभवात्मक शिक्षण गतिविधियों और मूल्यांकन प्रक्रिया पर जोर देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्देशों के कार्यान्वयन में तेजी लानी चाहिए। पिछले दो वर्षों में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा के प्रकाशन से शुरुआत करते हुए,पाठ्य पुस्तकों की तर्ज पर स्थानीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकें और अन्य अध्ययन सामग्री तैयार की जानी चाहिए, जो मातृभाषा सीखने और भारतीय ज्ञान परंपराओं और मूल्यों पर जोर देती हों।
शिक्षकों को महाविद्यालय स्तर पर चिकित्सा शिक्षा सहित अन्य तकनीकी एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रम की किताबें स्थानीय भाषा में तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए,साथ ही शिक्षकों, शिक्षण संस्थानों और अभिभावकों का यह सोचकर निष्क्रिय रहना ठीक नहीं है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की पूरी जिम्मेदारी सरकार की है।
प्रधानाचार्य और शिक्षक शिक्षण संस्थानों में विभिन्न नवाचार और शिक्षण विधियों को लागू कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें छात्रों के चरित्र निर्माण, संवैधानिक और जीवन मूल्यों के कार्यान्वयन, क्षेत्रीय भाषाओं में सभी पाठ्यक्रम मे होने चाहिए। इसे आवश्यक पुस्तकों और डिजिटल उत्पादों को तैयार करने के लिए प्रदान किए गए अवसरों का भी अधिकतम लाभ उठाना चाहिए।
विश्वविद्यालय और संस्थान भारतीय ज्ञान परंपरा में बुनियादी पाठ्यक्रम और ओरिएंटेशन कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं। सरकार को भी इस संबंध में जनजागरण के कार्यक्रमों की पहल करनी चाहिए। नई राष्ट्रीय नीति द्वारा विधिवत तरीके से भारतीय शिक्षा को बदलने के लिए विद्यार्थी, शिक्षकों और संस्थागत नेताओं को प्रेरित और मार्गदर्शन करने तथा परिवर्तन के बारे में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने के लिए फरवरी में प्रयाग में कुंभ मेले के साथ “ज्ञान महाकुंभम” का आयोजन किया जाएगा।
उससे पहले भारत के शैक्षणिक इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण माने जाने वाले हरिद्वार, नालन्दा, पुडुचेरी और कर्णावती में भी क्षेत्रीय ज्ञानकुंभ का आयोजन किया जाएगा। इन ज्ञानकुंभों का मुख्य उद्देश्य छात्रों, शिक्षकों और शैक्षिक अधिकारियों में सेवा और साधना के रूप में शिक्षा की अवधारणा को बहाल करना है।
ए.विनोद,राष्ट्रीय संयोजक ,शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने 18-20 सितंबर 2024 तक अपने असम प्रवास के दौरान विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं शिक्षा संस्थानों के शिक्षाविदों एवं विद्यार्थियों के साथ औपचारिक परिचर्चा के दौरान अपने विचार रखे। ए. विनोद ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन मे समाज के सभी वर्गों को दायित्व पालन हेतु प्रेरित किया। उक्त परिचर्चा का आयोजन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास,असम प्रांत के संयोजक प्रो.कंदर्प सैकिया के सक्रिय सहयोग से किया गया था।
विशेष संवाददाता