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देश की सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार (21 फरवरी, 2025) को बीफ मामले की सुनवाई करते हुए असम सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि उसे ऐसे लोगों के पीछे भागने के बजाय कुछ और बेहतर काम करने चाहिए। कोर्ट ने ये टिप्पणी तब की जब वो बीफ ट्रांसपोर्ट करने के मामले की सुनवाई कर रहा था।
जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी और मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल तय की। राज्य सरकार की ओर से मीट सैंपल को टेस्टिंग के लिए प्रयोगशाला भेजे जाने की जानकारी दिए जाने के बाद पीठ ने कहा, “राज्य को इन लोगों के पीछे भागने के बजाय कुछ और बेहतर काम करने चाहिए।” राज्य सरकार की ओर से वकील ने कहा कि ट्रांसपोर्टेशन को रोक दिया गया और जब ड्राइवर से ट्रक में भरे माल के बारे में जानकारी मांगी गई तो उसने सही जानकारी नहीं दी।
वकील ने कहा कि इसके बाद मांस को फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेज दिया गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि जो शख्स एक्सपर्ट नहीं है वह सिर्फ देखकर अलग-अलग जानवरों के कच्चे मांस में अंतर नहीं बता सकता.अदालत ने कहा, “कोई व्यक्ति कैसे जान पाएगा कि यह गोमांस है या कोई अन्य मांस? अगर मान भी लो कि किसी व्यक्ति के पास ये है तो वह कैसे पहचान पाएगा कि यह किस जानवर का मांस है? नंगी आंखें दोनों में अंतर नहीं कर सकतीं।”
आरोपी के वकील ने दलील दी कि उनका मुवक्किल एक गोदाम का मालिक था और उसने केवल पैक किया हुआ कच्चा मांस ही ट्रांसपोर्ट किया था। असम मवेशी संरक्षण अधिनियम की धारा 8 का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि यह प्रावधान तभी लागू किया जा सकता है जब आरोपी को पता हो कि बेचा जा रहा मांस गोमांस है। जबकि असम सरकार के वकील ने तर्क दिया कि आरोपी मांस की पैकेजिंग और बिक्री में शामिल था। वहीं, पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई जरूरी है और इसे अप्रैल में सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया। साभार – एबीपी