Saturday, May 24, 2025

मुलुक चलो की 104वीं वर्षगांठ पर निविया बोधन स्कूल में शहीदों को दिया गया भावभीनी श्रद्धांजलि।

  • बराक घाटी के श्रमिक नेताओं की विफलता के चलते आजादी के सतहत्तर साल बाद भी उन अमर शहीदों के याद में ऐतिहासिक स्थल पर स्मारक नहीं बन पाया – आयोजक समिति

मनोज मोहंती – नीबिया

1921 में सुरमा-बराक घाटी में संघटित ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम मुलुक चलो आंदोलन की 104वीं वर्षगांठ पर, श्रीभूमि जिले के नीविया के बोधन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में उस आंदोलन के अनगिनत अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। पिछले पांच वर्षों से मुलुक चलो आंदोलन श्रद्धांजलि समारोह के केन्द्रीय  समिति बराक घाटी के जनमानस तक उस स्वतंत्रता संग्राम की कहानी पहुंचाने के लिए हर साल अलग-अलग स्थानों पर समारोह आयोजित करती रही है। इस वर्ष भी समिति की पहल पर श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया।

समारोह में बराक की मिट्टी से पनपी उस स्वतंत्रता संग्राम के वीर सैनिकों को याद करते हुए अस्थायी शहीद वेदी पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। समारोह में स्कूली छात्रों सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। रामकृष्णनगर सम जिला आयुक्त के प्रतिनिधि और कार्यवाहक सर्किल अधिकारी जोनाथन भाइफेई मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

इस अवसर पर बोधन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्राचार्य श्रीमती कृष्णा गोवाला, बराक उपत्यका बंग साहित्य और सांस्कृतिक सम्मेलन रामकृष्णनगर क्षेत्रीय संघ के सचिव हिमांशु शेखर देब रॉय, चेरागी जिला परिषद सदस्य अधिवक्ता पंकज रायशर्मा, दुल्लबछड़ा जिला परिषद सदस्य प्रणब मुखर्जी, लालछेड़ा गांव पंचायत के भूतपूर्व सभापति संजय कुमार गोस्वामी, दुल्लाभछड़ा मंडल भाजपा अध्यक्ष चंदन भर, वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता उमाशंकर बनिया, बोधन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के पूर्व उप प्राचार्य श्यामा नारायण यादव, मुलुक चलो आंदोलन श्रद्धांजलि समारोह केन्द्रीय समिति के मुख्य समन्वयक मनोज मोहंती, सह समन्वयक राजदीप राय, लालछड़ा गांव पंचायत पूर्व आंचलिक पंचायत सदस्य हेनय नाथ आदि मौजूद थे।

कार्यक्रम का संचालन सामाजिक कार्यकर्ता रजत भट्टाचार्य ने किया तथा राजदीप राय ने प्रासंगिक भाषण दिए। वर्तमान संदर्भ पर चर्चा करते हुए आयोजन समिति के मुख्य समन्वयक मनोज मोहंती ने इस महान आंदोलन के शहीदों की याद में आज तक कोई स्मारक नहीं बनाए जाने पर अफसोस जताया और इसे बराक घाटी के चाय श्रमिक नेताओं और मंत्रियों की विफलता बताया। बराक बंग के क्षेत्रीय सचिव हिमांशु शेखर देबरॉय ने मुलुक चलो आंदोलन की अमर कहानी पर प्रकाश डाला।

वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता उमाशंकर बनिया ने कहा कि मुलुक चलो आंदोलन औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश शासकों और कंपनी के खिलाफ चाय श्रमिकों का सबसे बड़ा आंदोलन था। उस आंदोलन की ताकत के कारण सिलहट जिले सहित पूरे असम राज्य में रेल और स्टीमर सेवाएं तीन महीने तक निलंबित करनी पड़ी थीं। जिसका प्रभाव सम्पूर्ण भारत पर पड़ा। देशबन्धु चितरंजन दास ने इस आंदोलन को स्वराज आंदोलन की संज्ञा दी थी, तो वास्तव में वह बराक की धरती से उपजा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन था।

बराक घाटी से शुरू हुआ स्वराज आंदोलन इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उस आंदोलन का प्रभाव दूरगामी था, जिसके कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उस समय बराक घाटी का दौरा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। परिणामस्वरूप, 28 अगस्त 1921 को उन्होंने सिलचर में एक बैठक में भाग लिया, बागान मालिकों को संबोधित किया और श्रमिकों के उत्पीड़न को रोकने के लिए आवाज उठाई। लेकिन दुख की बात है कि आज भी उस ऐतिहासिक आंदोलन को वह मान्यता नहीं मिल पाई है जिसका वह हकदार है।

वर्तमान पीढ़ी को इतिहास में दिए गए उन बलिदानों को याद रखना चाहिए तथा नई पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जिला परिषद सदस्य पंकज रायशर्मा अपने भाषण में ने कहा कि भारत एक बहुरत्न राष्ट्र है। आज भारत के हर कोने में, हर वक्त  में, ऐसे अनगिनत लोग हैं, जिनके नाम इतिहास के पन्नों में शायद नहीं मिलते, जिन्होंने इस देश को बनाया है, इसे आगे बढ़ाया है। ऐसा ही एक आख्यान है मुलुक चलो आंदोलन। उन्होंने इस आंदोलन के अमर शहीदों की स्मृति में एक स्थायी स्मारक बनाने का वादा किया। कार्यक्रम की शुरुआत में स्कूल के विद्यार्थियों ने वंदे मातरम का गायन किया तथा कार्यक्रम का समापन समवेत स्वर में राष्ट्रगान के साथ हुआ।

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