Saturday, January 11, 2025

हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाना चाहिए : प्रो. राजीव मोहन पंत

असम विश्वविद्यालय, सिलचर द्वारा विश्व हिंदी दिवस पर “राजभाषा हिंदी में प्रशासनिक प्रबंधन: चुनौतियां एवं संभावनाएं” विषय पर संगोष्ठी आयोजित

असम विश्वविद्यालय, सिलचर राजभाषा प्रकोष्ठ द्वारा विश्व हिंदी दिवस पर “राजभाषा हिंदी में प्रशासनिक प्रबंधन: चुनौतियां एवं संभावनाएं” विषय पर संगोष्ठी आयोजित किया गया। इस अवसर पर असम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजीव मोहन पंत, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के डॉ सौरभ वर्मा संगोष्ठी में उपस्थित रहकर संबोधित किया।

अपने संबोधन में कुलपति प्रो. पंत ने विश्व हिंदी दिवस पर आयोजित संगोष्ठी विषय को प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए। चर्चा करना भी ज़रूरी है, चूंकि हिंदी हमारी राजभाषा है। उनका कहना था कि हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाना चाहिए, क्योंकि भारत में सबसे अधिक हिंदी बोली जाती है। विश्व में भी हिंदी एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में मानी और बोली जाती है। हमें लगता है, इस भाषा में कोई टेक्निकल पढ़ाई नहीं हो सकती या और कोई अवरोध आ सकते हैं, लेकिन हम प्रयास करें तो सब सभव है।

जब चीन, जापान,स्पेन जैसे देश अपनी भाषा में कोई भी कार्यक्रम चला सकते है। ऐसे में हिंदी में भी संभव हो सकता है। यह क्षेत्र राजभाषा के हिसाब से ग क्षेत्र में आता है, जिस प्रकार राजभाषा के लिए एक सामूहिक स्तर पर प्रयास चल रहा है, निश्चित रूप से हिंदी की प्रचार – प्रसार में और गति मिलेगी।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारे राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सौरभ वर्मा ने कहा कि सरकारी संस्थानों में आंतरिक संचार सरल भाषा में करना चाहिए और हिंदी भाषा में करना अनिवार्य है। राजभाषा विभाग द्वारा जारी शब्दकोश और सिंधु और गुगल इनपुट का प्रयोग करके हम ग़ क्षेत्र के लिए 30 प्रतिशत निर्धारित टिप्पणियां लिख कर हिंदी भाषा को समृद्ध बना सकते हैं। डॉ अजीता तिवारी ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम में स्वाधीनता सेनानियों ने हिंदी भाषा को संवाद का माध्यम बना कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। प्रो. रामकुमार महतो ने कहा कि हिंदी का किसी से स्पर्धा और विरोध नहीं। यदि हम प्रशासनिक प्रबंधन में बिना किसी राजनीतिक विरोध के हिंदी का प्रयोग करें तो निश्चित रूप से हिंदी पूर्णतः लागू हो जाएगी।

डॉ जावेद रहमानी ने कहा कि ज़बान एक श्रृंगार की तरह है, जितना सजा के प्रस्तुत करेंगे उतना ही सुंदर लगेगा। प्रो कृष्ण मोहन झा ने बोलते हुए कहा कि राजभाषा विभाग द्वारा बनाई गई प्रशासनिक शब्दावली कठिन है। यदि हम आम बोलचाल की भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों को हिंदी भाषा में और देवनागरी में लिखे तो इससे हिंदी और भी समृद्ध हो जाएगी। डॉ राजन वैद्य ने कहा कि जहां चुनौतियां हैं वहीं संभावनाएं हैं। दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। सुश्री सुप्रिया चौबे ने वैदिक मित्रों के उच्चारण से कार्यक्रम में चार चांद लगा दिया।

कार्यक्रम का संचालन असम विवि, सिलचर के हिंदी अधिकारी डॉ. सुरेंद्र कुमार उपाध्याय ने किया। विश्वविद्यालय में हिंदी अनुवाद अधिकारी पृथ्वीराज ग्वाला ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। संतोष ग्वाला ने कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कार्यक्रम में प्रो गंगाभूषण, डॉ शुभादीप राय चौधरी, पिनाक कांति राय, देवाशीष चक्रवर्ती, अनूप वर्मा, सुब्रता सिन्हा, शंकर शुक्लवैद, बिप्रेश गोस्वामी, पिकलु पाल और बहुत सारे अधिकारियों और कर्मचारियों ने भाग लिया।

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